कार्तिक पुर्णिमा

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      कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
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🔆🔆आज 25 नवम्बर 2015 बुधवार को कार्तिक – त्रिपुरारी पूर्णिमा हैं ।🔆🔆

🙏सृष्टि के प्रारम्भ से ही कार्तिक पूर्णिमा की तिथि बड़ी ही खास रही है। पुराणों में इस दिन स्नान,व्रत, तप एवं दान को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। इस माह के महत्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास की व्याख्या करते हुए कहा है,‘पौधों में तुलसी , मासों में कार्तिक , दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के सबसे निकट है।’ इसीलिए इस मास में भगवान श्री नारायण के साथ तुलसी और शालीग्राम के पूजन से भी असीम पुण्य प्राप्त होता है ।

🙏इस पवित्र माह में की पूजा, व्रत दान और नित्य सुबह स्नान से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक हजार बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान, वैशाख माह में नर्मदा नदी पर करोड़ बार स्नान के समतुल्य होता है। जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी भी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से प्राप्त होता है।

🙏 कार्तिक मास की पूर्णिमा का बहुत ही ज्यादा महत्व है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा / त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे, इसीलिए इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से मनुष्य अगले सात जन्म तक ज्ञानी, धनवान और भाग्यशाली होता है।

🙏 इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूर्ण श्रद्धा से पूजन करने से जातक को भगवान शिव जी की अनुकम्पा प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।

🙏पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में धर्म, वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुन: उठते हैं और पूर्णिमा से कार्यरत हो जाते हैं। इसी दिन लक्ष्मी की अंशरूपा तुलसी का विवाह विष्णु स्वरूप शालिग्राम से होता है। इन्ही सब खुशियों के कारण देवता स्वर्गलोक में दिवाली मनाते हैं इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार शरद् ऋतु को भगवान श्रीकृष्ण की महारासलीला का काल माना गया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार शरद् पूर्णिमा की चाँदनी में श्रीकृष्ण का महारास संपन्न हुआ था।

🙏कार्तिक पूर्णिमा में सूर्योदय से पूर्व स्नान से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है सूर्योदय होने के पश्चात् स्नान का महत्व कम हो जाता है। ऋषि अंगिरा ने स्नान के बारे में लिखा है कि इस दिन जातक शास्त्रों के नियमों का पालन करते हुए स्नान करते समय सबसे पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें,क्योंकि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फलों से सम्पूर्ण पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है|दान देते समय जातक हाथ में जल लेकर ही दान करें। इसी प्रकार यदि जातक यज्ञ और जप कर रहा हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।

🙏इस दिन जातक को माँ गंगा, भगवान शिव, विष्णु जी और सूर्य देव का स्मरण करते हुए नदी या तालाब में स्नान के लिए प्रवेश करना चाहिए । स्नान करते समय आधा शरीर तक जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करने से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है लेकिन विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को लगाकर ही स्नान करना चाहिए। इस दौरान भगवान विष्णु जी के ॐ अच्युताय नम:, ॐ केशवाये नम:, ॐ अनंताय: नम: मन्त्रों का लगातार जाप करते रहना चाहिए। ( यदि घर पर स्नान करे तो पानी में गंगा जल अवश्य ही डालें )

🙏कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ, अपनी समर्थानुसार पूर्ण श्रद्धा के साथ दान और गरीबों को भोजन आदि करने से सभी सांसारिक पापों से छुटकारा मिलता है| इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन और वस्त्र दान का भी बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है। कहते है कि इस दिन जो भी दान किया जाता हैं हमें उसका अनंत गुना लाभ मिलता है। यह भी मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ भी दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।

🙏 कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद भगवान श्री सत्यनारायण के व्रत की कथा अवश्य ही सुननी चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान श्री हरि की गंध, अक्षत, पीले लाल पुष्प, नारियल, पान, सुपारी, कलावा, तुलसी, आंवला, दूर्वा, शमी पत्र,पीपल के पत्तों एवं गंगाजल से पूजन करने से व्यक्ति को जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता है। वह इस लोक में समस्त सांसारिक सुखों को भोगते हुए अंत में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

🙏 इस दिन सायंकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाए जाते हैं और गंगाजी / नदियों को भी दीपदान किया जाता है।

🙏इस दिन संध्याकाल में जो लोग अपने घरों को दीपक जला कर सजाते है उनका जीवन सदैव आलोकित प्रकाश से प्रकाशित होता है उन्हें अतुल लक्ष्मी, रूप, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, माँ लक्ष्मी ऐसे लोगो के घरों में स्थाई रूप से सदैव निवास करती है । इसीलिए इस दिन हर जातक को अपने घर के आँगन, मंदिर, तुलसी, नल के पास, छतों और चारदीवारी पर दीपक अवश्य ही जलाना चाहिए।

🙏 इस दिन किसी भी शिव मंदिर में शिवलिंग के निकट दीप जरूर जलाना चाहिए, यह कोशिश रहे की दीपक रात भर जलता रहे, इससे भगवान भोले नाथ की कृपा प्राप्त होती है, जिसके फलस्वरूप जातक के परिवार से रोग, दुर्घटना, और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है ।

🙏 कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिक्ख सम्प्रदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देवजी का जन्म हुआ था इसलिए इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है। इस दिन सिक्ख श्रद्धालु गुरूद्वारों में जाकर शबद – कीर्तन – गुरूवाणी सुनते हैं और गुरु नानक देवजी के सिखाये मार्ग पर चलने का संकल्प लेते है। इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के लोग अपने घरो और गुरुद्वारों को खूब रौशनी करके जगमगाते है ।
     
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Posted from Keshumali

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